वो सुहाने दिन आज फिर ढूँढती हूँ,
ज़िन्दगी में करार आज फिर ढूँढती हूँ।
चल तो पड़ी हूँ तन्हा इस सफ़र पर,
अपने हाथ में फिर भी उसका हाथ ढूँढती हूँ।
शजर से टूटते हुए पत्ते बहुत देखे,
फिर भी खिज़ा की रुत् में बहार ढूँढती हूँ।
एह्सास है कि खो गयी हूँ समुँदर में
दूर दूर तक फिर भी किनारा ढूँढती हूँ।
तन्हाई और उदासी कि भीड़ में
उसकी एक झलक को ढूँढती हूँ।
अंधेरों से भरे इस जीवन में
उजाले कि एक किरण को ढूँढती हूँ।
2 Comments:
aur tab bhi hame humari manzil humare chhote se pyar me mil jaati hai..
aur dhundne ko kuch bachta nahi ......
ab to samundar me doob jaana hai.....
remember ghalib....yeh ishk nahi aasaa...itna samajh lije ....ek aag ka dariya hai...aur doob ke jaana hai....
By Aparna Mudi, at 4/10/2006 11:59 PM
Hi there..meet_me
thanks for dropping by my blog.
:)
By Jewel Rays, at 4/11/2006 1:15 AM
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